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श्री गुरु वंदना
श्री गुरु-चरण-पद्म केवल भकति सद्म
बंदॊ मुयि सावधान मते
जाहार प्रसादे भाइ ए भव तोरिया जाइ
कृष्ण-प्राप्ति होय् जाहा ह’ते
गुरु-मुख-पद्म-वाक्य, चित्तेतॆ कॊरिया ऐक्य
आर् ना कोरिहो मने आशा
श्री गुरु-चरणे रति, ऎइ से उत्तम-गति,
जे प्रसादे पूरे सर्व आशा
चखु-दान् दिलो जेइ जन्मे जन्मे प्रभु सेइ
दिव्य-ज्ञान् हृदे प्रॊकाशितो
प्रेम-भक्ति जाहा होइते अविद्या विनाश जाते
वेदॆ गाय् जाहार चरितो
श्री गुरु करुणासिंधु, अधम जनर बंधु
लोकनाथ् लोकेर जीवन
प्रभुपाद पतित पावन....
हा हा प्रभु कोरो दोया, देहो मोरे पद-छाया,
एबे जश घुषुक् त्रिभुवन
जय जय प्रभुपाद!!


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